International Yoga Day on 21 june 2024 important postures of yoga mentioned in Bhagavad Gita

International Yoga Day on 21 june 2024 important postures of yoga mentioned in Bhagavad Gita International Yoga Day 2024: गीता में वर्णित ये योग मुद्राएं आधुनिक युग में कितने लाभकारी ?

International Yoga Day 2024: योग के महत्व को दुनियाभर में बढ़ावा देने के उद्देश्य से हर साल 21 जून को विश्व योग दिवस (Yoga Diwas 2024) मनाया जाता है. योग के कई शारीरिक और मानसिक लाभ हैं. लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण से योग केवल क्रिया या शब्द मात्र न होकर ईश्वर से मिलते का मार्ग है.  

गीता (Bhagavad Gita) के अनुसार, मनुष्य का संबंध मुख्यत: तीन तरह के योग से होता है. जोकि इस प्रकार हैं:- ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग. श्रीकृष्ण (Lord Krishna) के अनुसार इनमें कर्मयोग को सभी योग में महत्वपूर्ण माना गया है. श्रीकृष्ण अर्जुन से महाभारत युद्ध के दौरान कहते हैं कि, कर्मयोग ही जीवन का सबसे बड़ा योग है. क्योंकि यह ऐसा योग है, जिससे कोई भी व्यक्ति कभी मुक्त नहीं हो सकता है.

श्रीकृष्ण कहते हैं कि केवल व्यक्ति ही नहीं बल्कि ईश्वर भी कर्मयोग से बंधे हैं और वे स्वयं भी कर्मयोग से मुक्त नहीं हैं. महाभारत (Mahabharat) युद्ध के दौरान जब अर्जुन मोह, माया और पारिवारिक बंधनों में बंधे थे और बाण चलाने में झिझक रहे थे तब श्रीकृष्ण ने उन्हें कई योग मुद्राओं का ज्ञान दिया. इन योग मुद्राओं से मन के मैल को साफ किया जा सकता है. लेकिन क्या आधुनिक युग में भी ये योग मुद्राएं लाभकारी हैं? आइये जानते हैं गीता में वर्णित इन योग मुद्राओं के बारे में-

विषाद योग: विषाद का अर्थ दुख से होता है. युद्ध भूमि में अर्जुन ने सामने जब अपनों को ही देखा तो विषाद से भर गए. तब अर्जुन के मन के इस भय को दूर करने के लिए कृष्ण ने उन्हें जो उपदेश दिए, वही गीता ज्ञान (Geeta Gyan) कहलाई. अर्जुन के मन से श्रीकृष्ण ने विषाद योग को दूर किया जिससे वे युद्ध के लिए तैयार हुए.

सांख्य योग: हर मनुष्य के जीवन में एक समय ऐसा आता है, जब उसे लगता है कि उसपर दुख हावी हो रहा है. ऐसी स्थिति में सांख्य योग का विश्लेष्ण करना चाहिए. सांख्य योग का अर्थ पुरुष प्रवृत्ति का विश्लेषण करना है. यह आग, मिट्टी, जल, हवा और आकाश से बना है और अंत में उसे इसी में विलीन हो जाना है.

कर्म योग: यह जीवन का सबसे बड़ा योग है, जो मनुष्य, देवता और ग्रह सभी के लिए है. कर्म ही व्यक्ति का पहला धर्म है. सूर्य और चंद्रमा भी अपने कर्म मार्ग पर चलते रहते हैं. इसी तरह हर व्यक्ति को कर्मशील बनते हुए अपने कार्यों को करना चाहिए.

ज्ञान योग: ज्ञान योग को श्रीकृष्ण अमृत के समान बताते हैं. क्योंकि ज्ञान से अधिक मूल्यवान कोई और वस्तु नहीं.

कर्म वैराग्य योग: कर्म करते रहना हर व्यक्ति का धर्म है. लेकिन कर्म के बदले कुछ पाने की इच्छा नहीं होनी चाहिए. गीता में इसलिए कहा गया है कि, कर्म करो और फल की चिंता मत करो. इसे ही कर्म वैराग्य योग कहा जाता है.

ध्यान योग: स्वयं का मूल्याकंन करने के लिए यह योग बहुत महत्वपूर्ण है. इस योग से मन और मस्तिष्क का मिलन होता है.

विज्ञान योग: विज्ञान योग का अर्थ है किसी वस्तु की खोज करना. यह खोज सत्य, तप, ज्ञान कुछ भी हो सकता है.

अक्षर ब्रह्म योग: इस योग से ब्रह्मा, अधिदेव, आध्यात्म और आत्म संयम की प्राप्ति होती है. इस योग के माध्यम से व्यक्ति अपने मन को शुद्ध करता है और नए सिरे से नए विचार को अपनाता है.

राज विद्या गुहा योग: यह योग गुप्त भी है और पवित्र भी. इस योग से आत्मा, मन, चेतना शुद्ध होती है. इस योग को अपनाने वाला हर बंधन से मुक्त हो जाता है. श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, इस योग को जानकर तुम्हें मुक्ति मिलेगी और तुम कष्ट और दुखों से मुक्त हो जाओगे. युद्ध भूमि में तुम जिन जटिलताओं से घिरे हो इससे मुक्त हो जाओगे. क्योंकि स्वतंत्रता ही हर आत्मा की अंतिम इच्छा होती है.

विभूति विस्तारा योग: इस योग के माध्यम से मनुष्य ईश्वर के समीप पहुंचता है.

विश्वरूप दर्शन योग: इस योग को अपनाते ही मनुष्य को ईश्वरीय रूप के दर्शन हो जाते हैं. इसलिए इसे अनंत योग माना जाता है.

भक्ति योग: ईश्वर की प्राप्ति के लिए भक्ति योग सर्वश्रेष्ठ है. इस योग के बगैर ईश्वर कहां मिलते हैं.

क्षेत्र विभाग योग: इस योग के माध्यम से आत्मा, परमात्मा और ज्ञान के रहस्यों को जाना जाता है. जो इस योग को सीख जाता है वह साधक योगी बन जाता है.

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को बताए ये योग मुद्राएं आज के आधुनिक समय में भी काफी महत्वपूर्ण हैं और व्यक्ति की जरूरत है. इन योग मुद्राओं को अपनाकर मन के मैल को साफ किया जा सकता है, ज्ञान को प्राप्त किया जा सकता है, मोह से मुक्त हुआ जा सकता है और ईश्वर को भी पाया जा सकता है.

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